कुछ लोगों ने उसे देखते ही वहाँ से हट जाने में ही अपनी ख़ैर समझी. अचानक लोगों को नेपथ्य से भारी बूटों की आवाज़ सुनाई दी और सेकेंड़ों में जलियाँवाला बाग़ के संकरीले रास्ते से 50 सैनिक प्रकट हुए और दो-दो का 'फ़ॉर्मेशन' बनाते हुए उँची जगह पर दोनों तरफ़ फैलने लगे. भीड़ का एक हिस्सा चिल्लाया, "आ गए, आ गए." वो वहाँ से बाहर जाने के लिए उठे. तभी एक आवाज़ आई, "बैठ जाओ, बैठ जाओ. गोली नहीं चलेगी."25 गोरखा और 25 बलूच सैनिकों में से आधों ने बैठ कर और आधों ने खड़े हो कर 'पोज़ीशन' ले ली. डायर ने बिना एक सेकेंड गंवाए आदेश दिया, 'फ़ायर.'
सैनिकों ने निशाना लिया और बिना किसी चेतावनी के गोलियाँ चलानी शुरू कर दीं. चारों तरफ़ लोग मर कर और घायल हो कर गिरने लगे. घुटने के बल बैठे हुए सैनिक चुन-चुन कर निशाना लगा रहे थे. उनकी कोई गोली बरबाद नहीं जा रही थी.
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